- राशी चतुर्वेदी
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खुले आसमान के नीचे हूँ मैं
अपनी मर्जी का मालिक हूँ मैं
दिल जो चाहे करता हूँ मैं
खुश हूँ की आज़ाद हूँ मैं।
सुबह से लेकर शाम तक
काम के बोझ से घायल हूँ मैं
वक़्त ने ऐसा दौडाया है मुझे
पर खुश हु मैं आज़ाद हूँ मैं ।
गर ये रिश्तों के बंधे धागे
और ये काम ज़िम्मेदारी के नाते
कितनो से किए ये कसमे ये वादे
कितने मुनाफे और कितने घाटे
ये सब अगर ज़ंजीर नहीं हैं
गुलाम बनाये बैठी नहीं हैं
हर ओर से मुझको जकडे नहीं हैं
तो सही है शायद आज़ाद हूँ मैं
खुश हूँ मैं आज़ाद हूँ मैं।
Wednesday, February 11, 2009
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