Monday, March 23, 2009

कवि की व्यथा

अविनाश अगरवाल, बोस्टन


रविवार सुबह देखा , मौसम का रंग था सुहाना
देख वसंत की मस्ती , हमारा भी दिल हुआ दीवाना
लगा आज हमारी कविता का होगा श्रीगणेश
कवियों की सूची में कहीं , हमारा भी होगा समावेश

क़दमों ने था अभी , लेखनी की ओर मुख मोडा
श्रीमती ने पकडाया , हाथों में सीरियल का कटोरा
कहा पतिधर्म निभाओ
बेटे को सीरियल खिलाओ
अब हाथ में सीरियल का चम्मच , मन में भावनाओं का अम्बार था
महाकाव्य रचने का सपना , जैसे आज साकार था
मन के भावों का अंकुर , बस अभी फूटा ही था
कल्पनाओं के घोडों नें अभी , कुछ दूर दौड़ा ही था .

तभी आई श्रीमती की दहाड़ , सीरियल खिला दिया क्या ,
आधी घंटे पहले दिया था ,ख़त्म करा दिया क्या ,
उत्तर में कहा मैंने , सीरियल ही खिला रहा हूँ
बस साथ ही साथ कुछ, पंक्तियाँ गुण रहा हूँ

अरे फिर वही तुम्हारी कविता , क्या नहीं तुम्हें कोई काम दूजा ?
करते नहीं क्यों तुम रविवार का , नहाना , धोना और पूजा ?
पता है तुम्हें , अब तुमसे लोग क्यों कटने लगे हैं ,
दुश्मनों की तो छोड , दोस्त भी तुम्हारे फ़ोन से डरने लगे हैं .
लगता है उन्हें , कमबख्त का फ़ोन यदि आएगा ,
ज़रूर फिर अपनी कोई बेतुकी कविता चिपकायेगा .
देनी चाही हमने सफाई , कवी का ऐसा बुरा नहीं हश्र है ,
जैसे तुम्हें अपने सतीत्व पर , हमें अपनें कवित्व पर गर्व है .
बेकार की ड्रामेबाजी छोडो , अभी बेड भी नया लाना है
चौदह तारीख को मेहमान आयेंगे , उन्हें कहाँ सुलाना है .

अब इस संसारशास्त्र के बीच , कविता हो गयी गुम
ज़िन्दगी लगी पुनः , रोज के ताने बाने बुन
सच कहता हूँ यारों , अब आई ऐसी घडी है
जीवन अर्थ का पीछा करने की अनवरत कड़ी है .

यूँही दफन हो गयी , हजारों कवियों की बेनाम रचनायें ,
इन दूध , सीरियल के डब्बों में
इनकी खनखनाहट है बस अब गूँजती
शक्कर और गेहूं की बोरियों में
इन्हीं किसी में तुम्हें , कवी का टूटा ह्रदय मिलेगा
कुछ अधूरी सी नज़्म मिलेगी , कुछ खोया अंदाज़ मिलेगा .

पर हिम्मत न हार साथियों , कविता लिखना न छोर देना तुम
वक़्त के अभाव से हालात के दबाव में , कभी हताश न होना तुम
जीवन के थपेडों से न डरने वाला ही वीर कवी है
सुप्त राष्ट्र में स्फूर्ति लौटा दे , अमिट उसीकी छवि है

कवी की वाणी में है शक्ति , जो विश्व हिला सकता है
कौन जाने तुममें से ही पुनः कोई , निराला या दिनकर हो सकता है .

4 comments:

  1. आत्म-स्वीकृति की बेहतर प्रस्तुति और कविता के अंत में कवियों को हताश न होने की सलाह अच्छी लगी। कहते हैं कि-

    आत्मा के सौन्दर्य का शब्द रूप है काव्य।
    मानव होना भाग्य है कवि होना सौभाग्य।।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
    कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
    www.manoramsuman.blogspot.com
    shyamalsuman@gmail.com

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  2. यही मंत्र जपते हुए ही तो हम सब लिखे जा रहे हैं।
    गेहूँ की बोरी में से कंकड़ छोड़ गेहूँ चुने जा रहे हैं।
    घुघूती बासूती

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  3. बड़ी सुन्दर कविताओं का संग्रह है आपके ब्लॉग पर.
    धन्यवाद.

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  4. Its a wonderful composition Avinash. - Niti

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