अमर ज्योति - अमर ज्योति'नदीम'
धूल को चंदन, ज़मीं को आसमाँ कैसे लिखें?
मरघटों में ज़िंदगी की दास्तां कैसे लिखें?
खेत में बचपन से खुरपी फावड़े से खेलती,
उँगलियों से खू़न छलके, मेंहदियां कैसे लिखें?
हर गली से आ रही हो जब धमाकों की सदा,
बाँसुरी कैसे लिखें; शहनाइयां कैसे लिखें?
कुछ मेहरबानों के हाथों कल ये बस्ती जल गई;
इस धुएँ को घर के चूल्हे का धुआँ कैसे लिखें?
दूर तक काँटे ही काँटे, फल नहीं, साया नहीं।
इन बबूलों को भला अमराइयां कैसे लिखें
रहज़नों से तेरी हमदर्दी का चरचा आम है;
मीर जाफर! तुझको मीर-ऐ-कारवाँ कैसे लिखें?
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दिल ने यूं तो बहाने बनाए बहुत;
फिर भी तुम बारहा याद आए बहुत।
दर्द का एहतराम हमने पूरा किया;
खिलखिलाए बहुत, मुस्कराए बहुत।
खण्डहरों में कभी कोई ठहरा नहीं;
पर इन्हें देखने लोग आए बहुत।
हम तो बदनाम मयक़श थे, चलते रहे;
वाइज़ों के क़दम डगमगाए बहुत।
धूप से यूं न डर; घर से बाहर निकल,
राह में हैं दरख़्तों के साए बहुत।
Wednesday, December 31, 2008
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