- विनय विशेष
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छले गये जो उजालों की घात में
अंधेरों से लिपट कर रोयेगें रात में
रोशनी मेहमां थी अंधेरों की रात भर
सुबह सूरज ले के आयी सौ्गात में
भीगें सहरा को धूप मरहम सी लगी
फ़फ़ौले हो गये थे बरसात में
फ़ंसी मछली हंसा परिन्दा
भरोसा और आदमी की जात में
नदी समा गई समन्दर में
कनारे उलझे रहे औकात में
तन्हाई की दर्द से शादी है
सितारों तुम भी आना बारात में
Wednesday, December 31, 2008
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