फानूस की न आस हो , उस पर हवा चले
फानूस = काँच का कवर
लेता हैं इम्तिहान गर , तो सब्र दे मुझे
कब तक किसी के साथ कोई रहनुमा चले
नफ़रत की आँधियाँ कभी, बदले की आग में
अब कौन लेके झंडा –ए- अमनो-वफ़ा चले
चलना अगर गुनाह है , अपने उसूल पर
सारी उमर सज़ाओं का ही सिल सिला चले
खंज़र लिए खड़े हो गर हाथों में दोस्त ही
"श्रद्धा" बताओ तुम वहाँ फ़िर क्या दुआ चले
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