---लक्ष्मीनारायण गुप्त
आज प्रिये मधु पी लो मन भर
देर करो ना पी लो सत्वर
आज बजा लो मन की वीणा
आज प्यार तुम कर लो मन भर
किसे पता है कल क्या होगा
आज खेल लो जितना चाहो
खेल खेल में मन बहला लो
पुष्पों से तुम केश सजा लो
प्रियतम को तुम गले लगा लो
किसे पता है कल क्या होगा
काल चक्र चल रहा निरंतर
खेल खिलाड़ी जायेंगे सब
मधु भी खोयेगा मादकता
पात्र रिक्त हो या न हो लेकिन
पीने वाले जायेंगे सब
पीलो जितनी चाहो अब
किसे पता है कल क्या होगा
आज मित्र से हाथ मिला लो
आज आँख भर दृश्य देख लो
आज आँख से आँख मिला लो
आज प्रिये तुम मन भर गा लो
जो करना है तुरंत कर लो
किसे पता है कल क्या होगा
Wednesday, January 7, 2009
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