Friday, January 9, 2009

कविता

- आर.सी.शर्मा ’आरसी’

सुबह का भूला घर आजाए शाम ढ़ले तो कविता है,

मेहनतकश हाथों को फिर से काम मिले तो कविता है,

मदिरालय को जाने वाला मुड़ जाए देवालय को,

गंगाजल के साथ उसे हरिनाम मिले तो कविता है ।

आंख का खारा पानी मीठे बैन सुने तो कविता है,

किसी दर्द को किसी शब्द से चैन मिले तो कविता है,

शब्द अगर मरहम बन जाएं रिसती हुई बिवाई पर,

तेरे आँसू मेरी आँख से अगर ढ़्ले तो कविता है ।

मन के मुरझाए उपवन में सुमन खिलें तो कविता है,

पिंजरे में बैठे पंछी को गगन मिले तो कविता है,

परदेसों की चकाचौंध में अब तक जितने भटके हैं,

उन लोगों को फिर से उनका वतन मिले तो कविता है ।

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गर यह धरा है गोल इसका व्यास है कविता,

परिधि पे भी है, केन्द्र के भी पास है कविता,

दो बिन्दुओं को दो दिलों सा जोड़ती है ये,

सच पूछिए इक ज्यामितीय अभ्यास है कविता ।

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