- संजय माथुर
ज़िन्दगी से हार के जो पूछा मैंने-
तू तो कहती है तू है मेरी,
फिर क्यों बनी है बैरन मेरी?
मैं चाहता हूँ हँसना, खुश रहना,
फिर क्यों रुलाती है मुझे बैरी?
मेरी ज़िन्दगी हँसी और बोली,
ज़िन्दगी हैं आपकी, बांदी नहीं हम!
हमसे रूठ के हँसेंगे? जाइए रुलायेंगे हम,
हमसे लड़े तो देखें, मचल जायेंगे हम?
दौडाया हमें तो देखिये फिर,
आपके हाथ भी न आयेंगे हम,
हम तो डूबेंगे, आपको भी ले डूबेंगे सनम,
गर प्यार से रखेंगे तो सिर पे बिठाएंगे हम,
ज़िन्दगी हैं आपकी, हम हैं तो आपको क्या गम?
बहुत जालिम शेह है मेरी ज़िन्दगी बेरहम,
क्या करें भाई! सिर्फ़ एक है ज़िन्दगी मेरी,
जिए जाते हैं उसी की बातों में आ के हम,
अब तो मरेंगे भी उसी की शर्तों पे हम,
उससे रूठ के कहिये तो कहाँ जायेंगे हम?
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Wednesday, January 7, 2009
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