Sunday, December 28, 2008

कभी कभी दुआओं का जवाब आता है

- राहुल उपाध्याय
http://mere--words.blogspot.com/

कभी कभी दुआओं का जवाब आता है
और कुछ इस तरह कि बेहिसाब आता है

यूँ तो प्यासा ही जाता है अक्सर सागर के पास
मगर कभी कभी सागर बन कर सैलाब आता है

ढूंढते रहते हैं जो फ़ुरसत के रात दिन
हो जाते हैं पस्त जब पर्चा रंग-ए-गुलाब आता है

दो दिलों के बीच पर्दा बड़ी आफ़त है
तौबा तौबा जब माशूक बेनक़ाब आता है

पराए भी अपनों की तरह पेश आते हैं 'राहुल'
वक़्त कभी कभी ऐसा भी खराब आता है

No comments:

Post a Comment