Sunday, December 28, 2008

अंधेरे से भिड़ा रहा

- मानोशी चेटर्जी
http://manoshichatterjee.blogspot.com/


अंधेरे से भिड़ा रहा
था जुगनु पर अड़ा रहा
.
उड़ा तो मैं बहुत मगर
ज़मीन से जुड़ा रहा
.
बहुत रुलाया ज़र्रे ने
जो आँख में पड़ा रहा
(ज़र्रा- धूल का कण, particle)
.
मैं सजदे में झुका रहा
वो बुत बना खड़ा रहा
.
पुरानी इक क़िताब का
सफ़ा कोई मुड़ा रहा
(सफ़ा- पन्ना, page)

हवा भी कम लड़ी नहीं
दरख़्त भी अड़ा रहा
(दरख़्त- पेड़, tree)
.
मैं वक़्त से उलझ गया
तु लम्हे में पड़ा रहा
.
वो याद बन के, ज़िंदगी
में मोती सा जड़ा रहा

मैं था धुँआ ऐ ’दोस्त’ पर
मिरा असर बड़ा रहा
.
--मानोशी
सफ़ा- पन्ना
जर्रे- धूल के कण
दरख़्त- पेड़

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