Wednesday, December 31, 2008

भ्रम

- सुधा ओम ढींगरा
http://www.vibhom.com/blogs/

शंकर को ढूंढने चले थे
हनुमान मिल गए;
क्या-क्या बदल के रूप- अनजान मिल गए.

एक दूसरे से पहले
दर्शन की होड़ में;
अनगिनत लोग रौंदते- इन्सान मिल गए.

माथे लगा के टीका
भक्तों की भीड़ में;
भक्ति की शिक्षा देते- शैतान मिल गए.

अपने ही अंतर्मन तक
जिसने कभी भी देखा;
दूर दिल में हँसते हुए- नादान मिल गए.

तोड़ा था पुजारी ने
मन्दिर के भरम को;
जब सिक्के लिए हाथ में- बेईमान मिल गए.

कुछ रिसते झोंपड़ों में
जब झाँक कर देखा;
मानुषी भेस में स्वयं- भगवान मिल गए.

अपने को समझतें हैं
जो ईश्वर से बड़कर;
संसार को भी कैसे-कैसे- विद्वान् मिल गए.

किस पर करे विश्वास
आशंकित सी सुधा;
देवता के रूप में जब- हैवान मिल गए.

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