Wednesday, December 31, 2008

बाकी न तेरी याद की परछाइयां रहीं

- देवी नंगरानी

बाकी न तेरी याद की परछाइयां रहीं
बस मेरी ज़िंदगी में ये तन्हाइयां रहीं.

डोली तो मेरे ख़्वाब की उठ्ठी नहीं, मगर
यादों में गूंजती हुई शहनाइयां रहीं.

बचपन तो छोड़ आए थे, लेकिन हमारे साथ
ता- उम्र खेलती हुई अमराइयां रहीं.

चाहत, ख़ुलूस, प्यार के रिश्ते बदल गए
जज़बात में न आज वो गहराइयां रहीं.

अच्छे थे जो भी लोग वो बाक़ी नहीं रहे
‘देवी’ जहां में अब कहां अच्छाइयां रहीं.१३

1 comment:

  1. 'यादों में गूंजती हुई…'
    'बचपन तो छोड़ आये थे लेकिन…'
    मन को छू गईं।
    बधाई।

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